समाज की बुराइयों से दूर एक बेहतर दुनिया का सपना देखती एक कविता समाज की बुराइयों से दूर एक बेहतर दुनिया का सपना देखती एक कविता
कैसे बढ़े ये कदम, तेरी मंदिर की ओर ? कैसे बढ़े ये कदम, तेरी मंदिर की ओर ?
खाकी वर्दी तेरी मनमर्जी ढाती जुर्म हजार है ए कैसा अत्याचार है ए कैसा भ्रष्टाचार है ! खाकी वर्दी तेरी मनमर्जी ढाती जुर्म हजार है ए कैसा अत्याचार है ए कैसा भ्रष्टाचार ...
आज के इस दौर को शब्दों पर चरितार्थ करने की एक छोटी सी कोशिश की है। आज के इस दौर को शब्दों पर चरितार्थ करने की एक छोटी सी कोशिश की है।
देख मेरी किस्मत अपनी मां की नजर में ही नहीं उठ पाई मै। देख मेरी किस्मत अपनी मां की नजर में ही नहीं उठ पाई मै।
झूठे समाज के लोग...। झूठे समाज के लोग...।